फाइटर प्लेन की उड़ान में अड़चन बन रही नीलगाय, विशेष तकनीक के जरिए किया जाएगा शिफ्ट

ग्वालियर
ग्वालियर की नीलगायों के आतंक की चर्चा दिल्ली के रक्षा मंत्रालय में हो रही है। दरअसल देश का सबसे बड़ा एयरफोर्स एयरबेस सेंटर ग्वालियर के महाराजपुरा इलाके में है। राफेल से लेकर अन्य हर तरह के अत्याधुनिक फाइटर प्लेन प्रशिक्षण उड़ान भरते हैं लेकिन इसके आसपास मौजूद लगभग दो सौ से ज्यादा नीलगायों ने उड़ानों में अड़चन डाल रखी है। अब इनको काबू करने के लिए सरकार बोमा तकनीक का इस्तेमाल करने की तैयारी में है।

महाराजपुरा में भारतीय वायुसेना के सबसे बड़ा बेस स्टेशन है। मिराज, फ्रांस की मंगाए गए चर्चित राफेल जैसे अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों का हैंगर भी यहीं है। इन फाइटर विमानों की नियमित अभ्यास उड़ानें होती रहती है लेकिन इस इलाके में नीलगायों के कई बड़े झुंडों ने बसेरा बना रखा है जो हवाई पट्टी तक कुलांचें भरने लगते है। इस वजह से अभ्यास उड़ान के दौरान किसी खतरनाक दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। एक बार तो दुर्घटना हो भी चुकी है। इस समस्या को लेकर भारतीय रक्षा मंत्रालय ने मध्यप्रदेश सरकार से सहयोग मांगा है लेकिन यह क्षेत्र अत्यंत संवेदनशील होने के कारण वन विभाग ने इसके लिए बोमा तकनीक का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव भेजा है। इससे नील गाय को पकड़ा जा सकता है।

ग्वालियर के डीएफओ विजेंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि अभी इस मामले को लेकर बातचीत चल रही है। एक बार विशेषज्ञों के साथ सीसीएफ और डीएफओ के नेतृत्व में टीम स्थल निरीक्षण कर चुकी है और प्रोजेक्ट भी बन चुका है। सरकार से स्वीकृति मिलते ही विशेषज्ञों द्वारा बोमा हेबिटेट बनाने का काम शुरू होगा।

क्या है बोमा तकनीक ?

जंगली जानवर और पशुओं को पकड़ने की यह तकनीक दक्षिण अफ्रीका में उपयोग की जाती है ताकि उनकी जान भी बच जाए और वे पकड़े भी जा सकें। विशेषज्ञों के अनुसार इसमें नील गाय को पकड़ने के लिए बाकायदा एक स्थान को चयनित कर एक खास हैबिटेट तैयार किया जाता है जो नील गाय फ्रेंडली हो फिर वहां नमक बिछाया जाता और अन्य ऐसे केमिकल डाले जाते हैं जिनकी गन्ध नीलगाय को आकर्षित करती है। इनके सहारे नीलगायों के झुंड उस क्षेत्र में ही आ जाते है। दरअसल यह एक बाडा होता है। फिर इसका एक गेट बनाया जाता है जहां खास तरह से खुले हुए ट्रक लगा दिए जाते है और जैसे ही नील गाय उस ट्रक में घुसती है वैसे ही  कैद हो जाते हैं।

 

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